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देवता: वायु: ऋषि: उलो वातायनः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

वात॒ आ वा॑तु भेष॒जं श॒म्भु म॑यो॒भु नो॑ हृ॒दे । प्र ण॒ आयूं॑षि तारिषत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāta ā vātu bheṣajaṁ śambhu mayobhu no hṛde | pra ṇa āyūṁṣi tāriṣat ||

पद पाठ

वातः॑ । आ । वा॒तु॒ । भे॒ष॒जम् । श॒म्ऽभु । मा॒यः॒ऽभु । नः॒ । हृ॒दे । प्र । नः॒ । आयूं॑षि । ता॒रि॒ष॒त् ॥ १०.१८६.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:186» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:44» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में वायु के प्रभाव दिखाए हैं, वायु जीवन देता है, रोग का शमन करता है, सच्चा साथी है मित्र के समान, इत्यादि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (वातः) वायु (नः) हमारे (हृदे) हृदय के लिए (शम्भु) रोग का शमन करनेवाला (मयोभु) सुख का भावक (भेषजम्) ओषध को (आ वातु) प्राप्त करावे (नः) हमारी (आयूंषि) आयु के प्रक्रमों को (तारिषत्) बढ़ाता रहे ॥१॥
भावार्थभाषाः - वायु मनुष्य के हृदय के लिए शान्तिदायक है, रोग का शमन करनेवाला कल्याणकारक महौषध है, ठीक रीति से वायु का सेवन करने पर वह आयु को बढ़ाता है ॥१॥
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ब्रह्ममुनि

अत्र सूक्ते वायुप्रभावाः प्रदर्श्यन्ते, वायुर्जीवनं ददाति रोगान् शमयति स च प्रमुखः सहायको मित्रवदस्ति, इत्यादयो विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (वातः) वायुः (नः-हृदे) अस्माकं हृदयाय “पद्दन्नो मास्हृद्…” [अष्टा० ६।१।६१] इति हृदयस्य हृद्-आदेशः (शम्भु मयोभु भेषजम्) रोगस्य शामकं सुखस्य भावकमौषधम् (आ वातु) प्रापयतु (नः-आयूंषि तारिषत्) अस्माकमायूंषि-आयुष्प्रक्रमान् प्रवर्धयतु ॥१॥